भागवत चिन्तन
यथा तरोर्मूलनिषेचनेन तृप्यन्ति तत्स्कन्धभुजोपशाखाः।
प्राणोपहाराच्च यथेन्द्रियाणां तथैव सर्वार्हणमच्युतेज्या।। (भागवत 4/31/14)
जिस तरह वृक्ष को सींचने से उसकी तनाएँ, शाखाएँ आदि सबका पोषण हो जाता है, जैसे भोजन द्वारा प्राणों को तृप्त करने से सारी इन्द्रियाँ पुष्ट हो जाती हैं, उसी तरह श्रीभगवान् की पूजा करने से सबों की पूजा हो जाती है। क्योंकि सम्पूर्ण जगत् श्रीहरि से ही उत्पन्न होता है तथा उन्हीं में समा जाता है।
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