गीता


।। गीता ।।

Geeta Updesh

ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र समाज के चार स्तंभ हैं।
श्लोक-चातुर्वण्र्यं मया सृष्टं गुण कर्म विभागशः।
तस्य कर्तारमपि मां विद्याकर्ता रमव्ययम्।।
।। गीता अ. 4-13।।
भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं-कि गुण और कर्मों के आधार पर मैंने चार वर्णों की सृष्टि उत्पत्ति की है, यद्यपि इन सबों को मैंने बनाया है, अर्जुन पिफर भी तुम मुझे अमर और अकर्ता समझो।
मानव योनी में जो भी आये हैं, उनके कर्म मिश्रित हैं। अर्थात् उनमें विभिन्न माद्ध में अच्छे और बुरे दोनों ही प्रकार के कर्म हैं। इसके साथ ही अलग-अलग वर्गों में सत्व, राजस अथवा तामस जैसे गुणों की न्यूनाधिक प्रभाव होता है। गुण और कर्मों के प्रभाव में अन्तर होने के कारण मानव को चार वर्णों में विभक्त किया गया है।
ब्राह्मणµजिनके व्यक्तित्व में सत्व की प्रबलता अधिक होती है। ब्राह्मण चिन्तनशील अन्तर्मुखी रहता है, तथा दूसरों के लिये आध्यात्मिक मार्गदर्शक बनने की इसमंे सहज प्रवृत्ति होती है।
शास्द्धें के स्वाध्याय और ध्यान के द्वारा स्वयं ज्ञान प्राप्त कर दूसरों में इस ज्ञान का प्रसार करना ही इनका कर्तव्य है।


क्षत्रिय-क्षत्रिय वे हैं जिनमें राजस की प्रबलता होती है। इनकी सहज प्रवृत्ति सैनिक अथवा राजनीतिज्ञ बनने की है। इनका कत्र्तव्य समाज में व्यवस्था और शासन बनाये रखना है।
वैश्यµवैश्य में राजस और तामस दोनों का मिश्रण प्रभावी रहता है। वैश्य स्वभाव से व्यापार अथवा धन संपत्ति अर्जित करने में रुचि रखने वाला होता है। वैश्य को अर्थनीति का अच्छा ज्ञान होता है। इसलिये उसका कर्तव्य समाज में आर्थिक ;धनद्ध सन्तुलन बनाये रखना है।
शूद्रµशूद्र में तामस गुण की अधिकता होती है। वह स्वभाव से ही दूसरों की सेवा में रुचि रखने वाला होता है। उसका कत्र्तव्य विभिन्न कार्यों और माध्यम से ब्राह्मण, क्षत्रिय, और वैश्य की सेवा करना है। वास्तव में देखा जाय शास्द्धें का अध्ययन किया जाय तो पता चलता है, कि मानव समाज इन चार स्तम्भों पर खड़ा है। यदि सभी वर्ण ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र अपने अपने कत्र्तव्यों का ठीक-ठीक पालन करते हैं, तो समाज की सर्वतोमुखीद्ध उन्नति होती है। तथा एक उत्कृष्ट संस्कृति का जन्म होता है। यदि व्यक्ति अपने कर्तव्यों को त्यागकर वे अपने स्वभाव के विपरीत दूसरे वर्णों के कार्य करने लगते हैं। तो उनका व्यक्तित्व तो स्वयं विकृत होता ही है, समाज मे अनेक प्रकार की विषमतायें, अशान्ति, असन्तुलन और असमंजस्यता भी उत्पन्न हो जाती है।
इन चार वर्णों की सृष्टि परमात्मा ने स्वयं की है, तथा ये सभी वर्ण उनसे ही निर्देशित होते रहते हैं। जिस प्रकार सूर्य सभी प्रकार के बीज को अंकुरित होने के लिये आवश्यक प्रकाश प्रदान करता है, वैसे ही परमेश्वर किसी भी वर्ण के जीव के लिये आवश्यक सहायता देते हैं। सूर्य के समान ही मानव के गुण तथा कर्म से परमेश्वर सर्वथा अप्रभावित और अछूते रहते हैं।
‘‘नमां कर्माणि लिम्पत्ति नमे कर्म पफले स्पृहा।
इति मां योभि जानाति कर्म भिर्नस बाध्यते।।
कर्म मुझे स्पर्श नहीं करते और न ही कर्मों के पफल की मुझे लालसा है। इस प्रकार मुझे जो भी जान लेता है, वह कर्म बन्धन से मुक्त हो जाता है।
अर्जुन का प्रश्न
श्री परमात्मा के पूर्णावतार श्री कृष्ण अपनी गीता के तीसरे अध्याय मे अर्जुन को निष्काम कर्म योग का उपदेश देने के बाद चैथे अध्याय मंे प्रारम्भ करते हुए कहा कि अर्जुन हमनें जगत के आरम्भ में इस कर्मयोग का उपदेश सूर्य को दिया था, सूर्य ने अपने पुत्र वैवश्वत मनु को दिया और मनु ने अपने पुत्र इक्ष्वाकु को दिया था इस प्रकार परम्परा से आये हुए इस कर्म योग को राजर्षि गण जानते थे।
परन्तु बहुत समय से यह विद्या लुप्त हो गई है, और इसी विद्या का हमने तुम्हें पुनः उपदेश किया है। अर्जुन ने तब पूछा-
   ‘‘अपरं भवतो जन्मपरं जन्म विवस्वतः’’
आप तो अबके है सूर्य नारायण तो पहले के हैं, फिर मैं आपकी बात कैसे मानूं कि आपने कल्प के आरम्भ में इस विद्या का उपदेश सूर्य को दिया?
भगवान श्री कृष्ण ने कहा
  ‘‘बहूनि में व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन’’ 
हे अुर्जन! जैसे बहुत से जन्म तेरे हैं, वैसे ही मेरे भी जन्म बहुत हुए हैं, अर्जुन विशेषता केवल इस बात की है कि तू उन सबको नहीं जानता, परन्तु मैं जानता हूं। श्रीकृष्ण के इस स्पष्ट उत्तर को सुन कर अर्जुन ने और कुछ नहीं पूछा। परन्तु अर्जुन ने हम समस्त मनुष्यों की तरपफ से एक प्रतिनिधि था, और गीता जी का उपदेश मात्र अर्जुन के लिये ही नहीं था, अपितु बल्कि सारे संसार के मनुष्यों के प्रयोजन के लिये था। इसलिये भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी सर्वज्ञता के कारण हम कलियुगी पुरुषों की बुद्धि में आने वाली शंकाओं और कुयुक्तियों को भी अपने हिसाब मंे लेकर प्रश्न किया। यद्यपि इनका अर्जुन ने तनिक भी नाम तक का भी जिक्र नहीं किया था, हम लोगों के कल्याण के लिये अपने आप शघ्का समाधान और कुयुक्त्यिों का निरसन किया।

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