ग्रहों की 6 अवस्थाएँ

ग्रहों की 6 अवस्थाएँ


ग्रहाणां षड्विधा भावाः शम्भुना गदिता पुरा। 
एतत्सर्वं प्रयत्नेन लिख्यते च मया­ऽधुना।।

 लज्जितो गर्वितश्चैव क्षुधितस्तृषितस्तथा।
 मुदितः क्षोभितश्चैव ग्रहभावाः प्रकीर्तिताः।। 

लज्जित, गर्वित, क्षुधित, तृषित, मुदित, क्षोभित ये 6 प्रकार की चेष्टा (अवस्थाएँ) होती है। 

पुत्रगेहगतः खेटो राहु-केतु यथा तथा।
 रविमन्दकुजैर्युक्तो लज्जितो ग्रह एव च।। 

जो ग्रह पंचम में स्थित होता है वह राहु या केतु से युक्त ग्रह अथवा सूर्य, शनि या मंगल से युक्त ग्रह लज्जित अवस्था मे होता है।

 तुंगस्थान गतो वापि त्रिकोणेऽपि भवेत् पुनः। 
गर्वितः सोऽपि गदितो मुनिभिः कृत निश्चयैः।। 
उच्च राशि में स्थित ग्रह व मूल त्रिकोण राशि में स्थित ग्रह की ऋषियों ने गर्वित संज्ञा की है।

 शत्रु गेहे शत्रुयुक्तो रिपुदृष्टो भवेत् यदि। 
क्षुधितः स च विज्ञेयो शनि युक्तो यथा तथा।। 

यदि कुण्डली में शत्रु राशिस्थ या शत्रु ग्रह से युक्त व शत्रु ग्रह से दृष्ट या शनि से युक्त ग्रह हो तो ऐसा ग्रह क्षुधित अवस्था वाला कहलाता है।
 
जल राशौ स्थितः खेटः शत्रुणा चावलोकितः। 
शुभग्रहा न पश्यन्ति तृषितः स उदाहृतः।।

 यदि कुण्डली में जल राशिस्थ (कर्क, वृश्चिक, मीन) ग्रह शत्रु ग्रह से दृष्ट एवं शुभ ग्रह से अदृष्ट हो तो वह ग्रह तृषित अवस्था में है ऐसा जानना चाहिये।

 मित्रगेहे मित्रयुक्तो मित्रेण चावलोकितः।
 गुरुणा सहितोयश्च मुदितः स प्रकीर्तितः।।

 यदि कुण्डली में मित्रराशिस्थ ग्रह मित्रग्रह से दृष्ट व युक्त हों या गुरु से युक्त हों तो उन ग्रहों को मुदित अवस्था में हैं ऐसा जानना चाहिये। 

रविणा सहितो यश्च पापाः पश्यन्ति सर्वथा। 
क्षोभितं तं विजानीयात् शत्रुणा यदि वीक्षितः।। 

यदि कुण्डली में सूर्य से युक्त ग्रह पापग्रहों से या शत्रुग्रहों से दृष्ट हो तो वह ग्रह क्षोभित अवस्था में होता है।
 ।।इति।।

 SHRI TRIPURSUNDARI VED GURUKULAM

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