SHRI VIDYA
माँ श्रीत्रिपुर-सुन्दरी (श्रीविद्या)
माँ श्रीत्रिपुर-सुन्दरी (श्रीविद्या)
माहेश्वरीशक्ति की सबसे मनोहर श्रीविग्रहवाली देवी हैं। महात्रिपुरसुन्दरी को श्रीविद्या, षोडशी, ललिता, राज-राजेश्वरी, बाला-सुन्दरी जैसे अनेक नामों से जाना जाता है।
इनके चार हाथ दर्शाए गए हैं।चारों हाथों में पाश, अंकुश, धनुष और बाण सुशोभित हैं।देवीभागवत में ये कहा गया है वर देने के लिए सदा-सर्वदा तत्पर भगवती माँ का श्रीविग्रह सौम्य और हृदय दया से परिपूर्ण है। जो इनका आश्रय लेते हैं, उन्हें माँ आशीर्वाद प्राप्त होता है। माता श्रीत्रिपुरसुन्दरी की महिमा अवर्णनीय है। संसार के समस्त तंत्र-मंत्र इनकी ही आराधना करते हैं। प्रसन्न होने पर ये भक्तों को अमूल्य निधियां तथा सिद्धियाँ प्रदान करती हैं।
चार दिशाओं में चार और एक ऊपर की ओर मुख होने से इन्हें तंत्रशास्त्रों में ‘पंचवक्त्र’ अर्थात् पाँच मुखों वाली कहा गया है। माँ सोलह-कलाओं से परिपूर्णहै, इसलिए इनका नाम ‘षोडशी’ भी है। एकबार पार्वतीजी ने भगवान शिवजी से पूछा, ‘भगवन्! आपके द्वारा वर्णित तंत्रशास्त्र की साधना से जीव के आधि-व्याधि, शोक-संताप, दीनता-हीनता तो दूर हो जाएगी, किन्तु गर्भवास और मरण के असह्य दुःख की निवृत्ति और मोक्षपद की प्राप्ति का कोई सरल व सुगम उपाय बताइये, तब पार्वती जी के पूछने पर भगवान शिव ने श्रीत्रिपुर-सुन्दरी (श्रीविद्या) साधना-पद्धति को प्रकट किया।
‘‘भैरवयामल और शक्तिलहरी’’ में श्रीत्रिपुरसुन्दरी उपासना का विस्तृत वर्णन मिलता है। ऋषि-दुर्वासा श्रीत्रिपुर-सुन्दरी (श्रीविद्या) के परम आराधक कहे गए हैं। श्रीत्रिपुर-सुन्दरी (श्रीविद्या) उपासना ‘‘श्रीचक्र’’ मेंहोतीहै।
आदिगुरू शंकरचार्य ने भी अपने ग्रन्थ सौन्दर्यलहरी में श्रीत्रिपुर-सुन्दरी (श्रीविद्या) की बड़ी सरस स्तुति की है। कहा जाताहै- भगवती श्रीत्रिपुर-सुन्दरी (श्रीविद्या) के आशीर्वाद से साधक को भोग और मोक्ष दोनों सहज उपलब्ध हो जाते हैं।
निवेदक:
आचार्यधीरेन्द्र
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