भीष्मपंचक व्रत



।। भीष्मपंचक व्रत ।।

कार्तिक मास में एक मास का व्रत स्नान कर सके तो वह कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा तक सूर्योदय से पूर्व स्नान एवं व्रत करने से कार्तिक मास का पूर्ण फल प्राप्त करता है। पुष्कर तीर्थ में जहां ब्रह्माजी ने यज्ञ किया था। श्रद्धालु आज भी जाकर नियम पूर्वक स्नान करते हैं एवं व्रत करते हैं। नारद जी ने ब्रह्मा जी से पूछा-इसका इतना बड़ा फल क्या है। ब्रह्मा जी ने कहा-वत्स शर शैया पर सोये हुए भीष्म के पास सबको लेकर श्री कृष्ण गये और कहा-अब ज्ञान का सूर्य अस्त होने चला है। इनसे धर्म के विषय में पूछ लीजिये। तब सब ऋषि-मुनियों की सन्निधि, दान धर्म मोक्ष धर्म स्त्री धर्म-और यश धर्म इन्हीं पांच दिनों में पूछा एवं भीष्म जी ने उसका वर्णन किया। अतः श्री कृष्ण की साक्षी एवं मोक्ष धर्म वर्णन के कारण ये दिन सर्वश्रेष्ठ है, इसी से इसे भीष्म पंचक कहते हैं।
भीष्म जी को इस मन्त्र से सव्य होकर अध्र्य देना चाहिये।
मन्त्र-

सत्यव्रताय  शुचये  गांगेयाय  महात्मने।

भीष्मायै तद्ददाम्यघ्र्यं आजन्म ब्रह्म चारिणे।।

जो पुरुष या स्त्री कार्तिक मास का व्रत करें- वो व्रती भीष्म पंचक व्रत को करें अन्यथा सब फल निष्फल हो जाता है। इस भीष्म पंचकद्ध व्रत को करके पूर्णिमा को पाप पुरुष का दान करना चाहिये। जो सन्तानहीन है, उसे इस व्रत के प्रभाव से एक वर्ष में अवश्य फत्र प्राप्ति होती है।
भीष्म पंचक व्रत करने से भगवान् विष्णु प्रसन्न होते हैं।

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