अक्षय नवमी



अक्षय नवमी - आँवला नवमी - कूष्माण्डा नवमी

कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को कूष्माण्ड नवमी कहते हैं। इस दिन भगवान् विष्णु ने कूष्माण्ड नाम के राक्षस का वध किया था। इस दिन कूष्माण्डकुम्हड़ामें सोना पंचरत्न या द्रव्य रखकर उसकी पूजा करनी चाहिये।
संकल्प इस प्रकार करें-मम सकल पापक्षय पूर्वक सुख सौभाग्य आदीनां उत्तरोत्तर वृद्धये कूष्माण्ड दानं करिष्ये।
प्रार्थना मन्त्र-
        कुष्माण्डं बहुबीजाढ्यं ब्राह्मणा निर्मितं फरा।
        दास्यामि  विष्णवेतुभ्यं  पितृणांतारणय  च।।
इस प्रकार पूजन आदि कर ब्राह्मण को दान दे दें।
।। आँवला नवमी ।।
इसी नवमी को आँवला के वृक्ष के जड़ के पास बैठकर ‘‘धात्रयै नमः’’ कहकर आह्वान करें। जल से पाद्य से अध्र्य से आचमन आदि के निमित्त वृक्ष के मूल में जल चढ़ायें। फिर दूध की धारा दें। दूध के पश्चात् फनः जल चढ़ायें। फिर मन्त्र उच्चारण पूर्वक सूत्र धागाद्ध लपेटे।
मन्त्र-
           दामोदर निवासायै धात्रयै देव्यै नमोनमः।
           सूत्राणानेन बध्नामि धात्रि देवि नमोस्तुते।।
चन्दन, फष्प, धूप, नैवेद्य आदि से पूजन करके आरती एवं परिक्रमा करें। धात्री मूल जल को नेत्रों में लगावे। और प्रणाम करें। आज के दिन भोजन में आंवला अवश्य होना चाहिये। तथा आंवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मणों को भोजन कराके स्वयं प्रसाद ग्रहण करें।

।। अक्षय नवमी ।।

ब्रह्माजी ने उत्कृष्ट तप किया। भगवान् ने प्रसन्न होकर दर्शन दिये दर्शनानन्द से पे्रमाश्रु टपके, इसी से आंवले की उत्पत्ति हुई। फराणों में निर्देश दिया है, यह परम पवित्र आमलकी फल उदर पेटद्ध में हो तोµयमदूत स्पर्श नहीं करते। मृत्यु के पश्चात् तुलसी या आंवला, गंगा जल से मनुष्य भगवद्धाम का अधिकारी होता है। आंवले के दर्शन पूजन भक्षण से प्रभु पे्रम की प्राप्ति होती है। भोजन के पश्चात् आंवले के चूर्ण भक्षण से मुखशुद्धि होकर मुख की झूठन दूर होती है।
धर्म शास्त्र का विधान है आयुर्वेद की दृष्टि से त्रिदोष नाशक होने से सभी रोग नष्ट होते हैं। आंवले के चूर्ण का सेवन करने वाले को हृदय रोग, केंसर, नेत्र रोग, पागलपन, ब्लडपे्रशर नहीं हो सकता। इस दिन जप, तप, पूजन करने वाले को अक्षय फण्य की प्राप्ति होती है। इसलिये यह अक्षय नवमी भी कहलाती है।
नोट-इसी दिन मथुरा वृन्दावन में जुगल जोड़ी की परिक्रमा भी होती है।

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