कज्जली तीज, सतूड़ी तीज


कज्जली तीज, सतूड़ी तीज (5 अगस्त, रविवार को)

भाद्रपद कृष्ण पक्ष की तृतीया को स्त्रियां इस त्योहार को मनाती हैं। इस दिन शिव एवं पार्वती का पूजन करें। स्त्रियां इस रोज सत्तु में चीनी तथा घी मिलाकर भोग लगाती हैं। तथा सासू को वायना देती हैं। प्रसाद पाती हैं, राजस्थान में स्त्रियां श्रृंगार करती हैं, आज के दिन हरकाली (पार्वती) देवी की पूजा करनी चाहिये। इससे सभी पापों का शमन होता है, एवं सुख.सौभाग्य सन्तान की प्राप्ति होती है। इस दिन गौ पूजन कर गाय को गुड़ खिलाना चाहिये।

कथा

विवाह के बाद एक दिन शिव पार्वती कैलाश में विरजामान थे। पर घर में कोई सास व ननंद नहीं है, दिन भर पति पत्नी में विनोद होता रहता, दिन भर हंसी का फव्वारा छूटता रहता था।
प्रातः सदा शिव हिमशिला (बर्फ शिला) पर आसन बिछाकर संध्या करके गायत्री जप कर रहे थे। पार्वती जी पीछे से आकर गलबैयां डालकर कहा-प्राणनाथ मैं कैसी लग रही हूं। शंकर जी तो कर्पूर गौरं करुणावतारं हैं। कपूर की तरह दिव्य रूपवान हैं। और पार्वती काली कलकत्ते वाली जिसके रूप को देखकर कोयल का भी रंग फीका लगे। ऐसी काली थी। अब जब माला पूर्ण हो तो भोले नाथ बोले-सोचने लगे! ऐसी लग रही हो कि मानो पूर्णिमा की चान्द को काली घटा ने घेर लिया हो। फिर सोचा ऐसा कहने पर प्राण प्रिया रूठ गई तो क्या होगा। मैं कह दूंगा चांद में क्या पड़ा है, काली घटा ही जल बरसाकर जीवन दान देती है।
पार्वजी जी ने फिर पीछे से एक झटका मारा। बताओ मैं कैसी लग रही हूं, झटके के कारण फिर सोचने लगे। शिव जी ने सोचा। कपूर की ढेरी पर मानों गोबर रख दिया हो। फिर सोचा.रूठ गईं तो कह दूंगा। गोबर में लक्ष्मी का वास है। उसके बिना यज्ञ ही नहीं हो सकता। तुम तो साक्षात् गृहलक्ष्मी हो। अभी माला पूर्ण नहीं हुई थी। पार्वती ने फिर एक झटका मारा। इस बार के झटके में पीछे की सारी बातें भूल गये और बोले तुम ऐसी लग रही हो, मानों श्वेत चन्दन के दिव्य वृक्ष को काली नागिन ने लपेट लिया हो।
इतना सुनते ही मां पार्वती दूर खड़ी हो गई क्रोध के मारे आंखें लाल हो गईं, नेत्रें से गंगा.यमुना बहने लगी। अपने को बड़ा सुन्दर समझते हो मेरी जैसी याचक का इतना बड़ा अपमान। मैंने आपको प्राप्त करने के लिये जीवन भर तपस्या की जिसका यह फल, शंकर जी ने कहा-मैंने तो विनोद (मजाक) किया था। पार्वती जी ने कहा किसी की आंख में उंगली से घोंचा मार दो और कह दो मैंने तो मजाक किया था। कड़ककर बोली, आपने जहर दिया है जो बोलते हो तो वाणी में वही उगलते हो, मैं काली हूं, तो आप महाकाल, मेरे पिता श्री दक्ष को खा गये। महाकाल देव सारे संसार को खाकर भी तृप्त नहीं होते हो। और मुझे काली कहते शर्म नहीं आती।
शंकर जी ने क्षमा याचना की देवी प्रसन्न हो जाओ भविष्य में सोच.समझकर बोलूंगा। पार्वती जी ने कहाµअब यह रूप आपकी सेवा में नहीं रहेगा। या तो गौराघ्गी बनूंगी या तो शरीर विसर्जित होगा। और चल दीं। फिर सोचा, यदि किसी सौत ने अधिकार जमा लिया तो क्या होगा, अपनी माया से रक्षक बनाकर घोर वन में उग्र तप करने लगीं। तप पूर्ण ही होने वाला था कि पवन देव ने सूचना दी शिव जी के यहां एक राक्षसी ने आपका रूप बनाकर घर पर अधिकार कर लिया है। सुनते ही माया से एक सिंह प्रगट किया। मुख में प्रवेश करने जा रही थी, कि भगवान नारायण प्रगट हुए। वरदान मांगों, मां पार्वती ने कहा अब क्या मांगू। मेरा तो घर उजड़ गया। भगवान हंसे। चिन्ता मत करो शंकर जी ने राक्षसी को मार दिया। सुनकर बड़ी प्रसन्न हुई। बोली प्रभु मुझे गौरी बना दीजिये। प्रभू ने कहा तथास्तु। ऐसी ही हो, पार्वती जी के शरीर से समस्त कालिमा लिये एक देवी चन्द्रघण्टा नाम की ऊपर चली गई। तथा पार्वती जी तपाये हुए सोने के समान गौरी हो गई। अब तक लोग काली शंकर जानते थे। आज से गौरी शंकर के नाम से आराधना करने लगे। आज के दिन पूर्ण तृतीया को हरकाली के स्मरण में तथा गौरीशंकर के गुणगान में व्रत और पूजन करते हैं।
।। इति कज्जली तृतीया व्रत ।।

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