नित्यकर्म


-: ब्रह्ममुहूर्त में जागरण:-

सूर्योदय से चार घड़ी (1:36घं.मि.) पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में ही जग जाना चाहिये। इस समय सोना शास्त्र में निषिद्ध है।
करावलोकन.आँखों के खुलते ही दोनों हाथ की हथेलियों को देखते हुए निम्नलिखित श्लोक का पाठ करें।
करागे्र वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती। करमूले स्थितो ब्रह्मा  प्रभाते  करदर्शनम्।।
हाथ के अग्रभाग में लक्ष्मी, हाथ के मध्य में सरस्वती, और हाथ के मूलभाग में ब्रह्मा जी निवास करते हैं। अतः प्रातः काल दोनों हाथों का अवलोकन करना चाहिये।
भूमि वन्दना.शय्या से उठकर पृथ्वी पर पैर रखने के पूर्व पृथ्वी माता का अभिवादन करें और उन पर पैर रखने की विवशता के लिये उनसे क्षमा मांगते हुये निम्न श्लोक का पाठ करें।
समुद्र वसने देवि पर्वतस्तनमण्डिते। विष्णु पत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे।।
समुद्र रूपी वस्त्रों को धारण करने वाली पर्वत स्वरूप स्तनों से मण्डित भगवान् विष्णु की पत्नी पृथ्वी देवी! आप मेरे पादस्पर्श को क्षमा करें।
मंगल दर्शन.तत्पश्चात् गोरोचन, चन्दन, सुवर्ण, शंख, मृदंग, दर्पण मणि आदि मांगलिक वस्तुओं का दर्शन करें तथा गुरु, अग्नि और सूर्य को नमस्कार करें।
माता, पिता गुरु एवं ईश्वर का अभिवादन.पैर, हाथ, मुख धोकर कुल्ला करें। इसके बाद रात का वस्त्र बदलकर आचमन करें। पुनः निम्नलिखित श्लोकों को पढ़कर सभी अंगों पर जल छिड़कंे। ऐसा करने से मानसिक स्नान हो जाता है।
-:मानसिक शुद्धि का मन्त्रः-
अतिनीलघनश्यामं नलिनायतलोचनम्। स्मरामि पुण्डरीकाक्ष तेनस्नातो भवाम्यहम्।।
इसके बाद मूर्तिमान् भगवान् माता.पिता एवं गुरुजनों का अभिवादन करें।
कर्म और उपासना का समुच्चय (तन्मूलक संकल्प).इसके बाद परमात्मा से प्रार्थना करें कि हे परमात्मन्! श्रुति और स्मृति आपकी ही आज्ञाएँ हैं। आपकी इन आज्ञाओं के पालन के लिये मैं इस समय से लेकर सोने तक सभी कार्य करूँगा। इससे आप मुझ पर प्रसन्न हों क्योंकि आज्ञापालन से बढ़कर स्वामी की और कोई सेवा नहीं होती।
 स्नान से पूर्व . गंगे च यमुने चैव, गोदावरि सरस्वती। 
      नर्मदे सिन्धु कावेरी, जलेस्मिन् संन्निधिं कुरु।।
अर्थ.हे गंगा, यमुना, गोदावरी, सरस्वती, नर्मदा, सिन्धु और कावेरी आप सभी इस जल में उपस्थित हों।
भोजन करने से पूर्व श्लोकः.अन्नपूर्णे  सदापूर्णे शंकरप्राण वल्लभे। 
ज्ञान वैराग्य सिद्धîर्थं भिक्षांदेहि च पार्वती।।
शयन से पूर्व श्लोक.ब्राह्माणं शंकरं विष्णुं यमं  रामं  दनुं बलिम्।
सप्तैतानि स्मरेनित्यं दुस्वप्नस्तस्य नश्यति।।
ब्रह्मा, शंकर, विष्णु, यम, राम, दनु और बलि इन सातों के नाम का नित्य स्मरण करने से दुः स्वप्न नष्ट होते है।
दैनिक कर्मों की सूची निर्धारण.इसी समय दिन रात के कार्यों की सूची तैयार कर लें। आज धर्म के कौन.कौन से कार्य करने हैं? धन के लिये क्या करना है? शरीर में कोई कष्ट तो नहीं है? यदि है तो उसका कारण क्या है? और उनका प्रतिकार क्या है।

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