Tuesday, February 16, 2016

Vedant (वेदांत)

वेदांत 
वेदांत शब्द 'वेद' और 'अंत' इन दो शब्दों के मेल से बना है, अत: इसका वाक्यार्थ वेद अथवा वेदों का अंतिम भाग है। वैदिक साहित्य मुख्यत: तीन भागों में विभक्त है-
कर्मकाण्ड
ज्ञानकाण्ड
उपासनाकाण्ड
साधारणत: वैदिक साहित्य के ब्राह्मण भाग को, जिसका सम्बन्ध यज्ञों से है, उसे कर्मकाण्ड कहते हैं
उपनिषदें ज्ञानकाण्ड कहलाती हैं जिसमें उपासना भी सम्मिलित है।
उपासनाकाण्ड का अर्थ क्रमश: 'तात्पर्य', 'सिद्धांत' तथा 'आंतरिक अभिप्राय' अथवा मंतव्य भी किया गया है।
देवी-देवता, मनुष्य, पशु-पक्षी, सारा विश्वप्रपच, नाम-रूपात्मक जगत ब्रह्म से भिन्न नहीं; यही वेदांत अर्थात वेदसिद्धांत है। जो कुछ दृष्टिगोचर होता है, जो कुछ नाम-रूप से सम्बोधित होता है, उसकी सत्ता ब्रह्म की सत्ता से भिन्न नहीं।
मनुष्य का एक मात्र कर्त्तव्य ब्रह्मज्ञान प्राप्ति, ब्रह्ममयता, ब्रह्मस्वरूप की प्राप्ति है। यही एक बात वेदों का मौलिक सिद्धांत, अंतिम तात्पर्य तथा सर्वोच्च-सर्वमान्य अभिप्राय है। यही वेदांत शब्द का मूलार्थ है। इस अर्थ में वेदांत शब्द से उपनिषद ग्रंथों का साक्षात्‌ बोध होता है। परवर्ती काल में वेदांत का तात्पर्य वह दार्शनिक सम्प्रदाय भी हो गया जो उपनिषदों के आधार पर केवल ब्रह्म की ही एक मात्र सत्ता मानता है। कई सूक्ष्म भेदों के आधार पर इसके कई उपसम्प्रदाय भी हैं, जैसे अद्वैतवाद, विशिष्टाद्वैत, शुद्धाद्वैतवाद आदि।
भर्तुमित्र, जयन्त कृत 'न्यायमंजरी' तथा यामुनाचार्य के 'सिद्धित्रय' वेदांत आचार्य रहे थे।
Acharya Dhirendra
Shri Tripursundari ved Gurkulam

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