श्रीराम चालीसा

।। श्रीराम चालीसा ।।

।। श्री मैथिली रमणो विजयते ।।
दोहाः-
जय रघुनन्दन रसिक वर जीवन प्राण अधार।
कृपा दृष्टि अवलोकिये रसिया रस दातार।।
चैपाई
जय रसिकेश रसिक मन हारी। जानकि बल्लभ अवधबिहारी।।
जय-जय जीवन प्राण पियारे। कृपा सनेह सदन सुकुमारे।।
जय-जय रास रसिक वन नागर। जय जानकी रमण रस सागर।।
जय अवधेश जनेश दुलारे। रूप अनूप जगत उजियारे।।
जय सरयू तट कुंज विहारी। कोटि मदन छबि पर बलिहारी।।
जय-जय कोशलेश सुत प्यारे। रसिकन मन चित चोरन हारे।।
जय मैथिली दृगन  के  तारे। रसमय  पावन  चरित तिहारे।।
जय रसिकन रस प्रेम प्रदायक। जय रस रूप सकल रसनायक।।
जय-जय शरणागत भयहारी। श्रीप्रमोद बन कुंज बिहारी।।
जयति अनादि अशेष कृपाला। जानकि जीवन रूप रसाला।।
छबि गुन शील रूप सुख सागर। अमित तेज बल बुद्धि उजागर।।
जयति कृपा करुणा सुख कन्दा। हरण सकल कलिमल भ्रमफन्दा।।
जय-जय जगत जनक जग कारण। करुणानिधि भूभार उतारण।।
शिवविधि विष्णुदेव मुनिनारद। शुक सनकादिक ब्रह्मविशारद।।
नाथचरण सरोज चित धरहीं। हित सों ध्यावत उर सुख भरहीं।।
जनमन रुचिको सदा निबाहत। निज ऐश्वर्य स्वरूप भुलावत।।
निज भक्तन पर सर्वस वारत। सेवक हित मानव तन धारत।।
प्राकृत जनइव करि नरलीला। संतन सुखद मोद रसलीला।।
हे सिय रंग रंगे पिय प्यारे। जीवन धन मम दृगन सितारे।।
एकबार हँसि हृदय लगाइय। संसय मोह समूल नसाइय।।
लेत  जो विबसहुँ नाम तुम्हारा। सोउ बिन श्रम उतरत भव पारा।।
प्रेम समेत जपै मनलाई। तेहिं कर विनहीं मोल बिकाई।।
वाकी योग क्षेम निज हाथा। करत देर लगावत नाथा।।
आत्म समर्पण जो करि देवै।  केवल नाथ शरण गति लेवै।।
निज सर्वस तेहिं ऊपरवारी। पीछे चलत धनुष करधारी।।
हौं अधमाधम अति अघरूपा। अधम उधारन रघुकुलभूपा।।
डूब रहेउँ भवसिन्धु मझारी। निजकर गहि अब लेहुँ उबारी।।
शरणागत प्राणहुँ ते प्यारो। तब दृढ़ ब्रत श्रुति शास्त्रा पुकारो।।
सुनि अस बिरद शरण तब आयो। बिनु गथ प्रभु के हाथ बिकायो।।
अब अपनाइअ निज जनजानी। सुहृद सुशील कृपा गुनखानी।।
अति अज्ञान  हृदय  ममछायो। अहमिति  बस  निजरूप भुलायो।।
जगत अनित्य सत्य सम जानी। रमत सदा यामें सुख मानी।।
अति चंचल मन विषयनमाहीं। पगो रहत कबहूँ थिर नाहीं।।
राग   दोष  ईर्षा   कुटिलाई। छल प्रपंच अतिसय दुखदाई।।
बिबिध भाँति नित मोहिं नचावें। नाथ चरण ते दूर बहावें।।
जेहि पर तब कर कंजन छाया। डरति सदा तेहि ते जड़माया।।
याते पुनि-पुनि कहौं निहोरी। अति सभीत मैं दोउ करजोरी।।
चरण शरण में अब रख लीजै। हिय में आप बसेरो कीजै।।
स्वयं प्रकाश होइ उरमाहीं। मिटै अविद्या संसय नाहीं।।
सीता शरण नाथ की आशा। सकल जगत से रहौं निराशा।।
दोहाः-
युगल चरण पंकजन में मधुकर इव मन मोर।
सीताशरण बसै सदा विनय अहै चित चोर।।
सावधान एकान्त में मन करि परम सचेत।
पाठ करै अति शुचि हृदय सादर प्रेम समेत।।
सो रघुनन्दन की कृपा पावै अविचल धाम।
सीताशरण सदा हृदय विहरैं सीताराम।।
छं. सो.-
जय रसिकेश उदार प्राण जीवन धन प्यारे।
जय छबि निधि सुख सिन्धु रूप गुनशील उजारे।।
जय जय करुणा खानि मृदुलचित कृपा अगारा।
निज जन मन अभिराम जयति रघुबंश कुमारा।।
निर्हेतुकी दयालु प्रणत जन आँनन्द कारी।
भक्त बछल सुख धाम राम श्रीअवध बिहारी।।
निज पद कँज दिखाय हरिय अति बिपति हमारी।
सीता शरण बिलोक चरण होइहौं बलिहारी।।
।। श्री राम चालीसा सम्पूर्ण ।।
।। जय श्रीराम।।
कान्हादर्शन ज्योतिष केन्द्र
आचार्य धीरेन्द्र
mo.9871662417

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