Wednesday, November 21, 2012

श्रीराम चालीसा

।। श्रीराम चालीसा ।।

।। श्री मैथिली रमणो विजयते ।।
दोहाः-
जय रघुनन्दन रसिक वर जीवन प्राण अधार।
कृपा दृष्टि अवलोकिये रसिया रस दातार।।
चैपाई
जय रसिकेश रसिक मन हारी। जानकि बल्लभ अवधबिहारी।।
जय-जय जीवन प्राण पियारे। कृपा सनेह सदन सुकुमारे।।
जय-जय रास रसिक वन नागर। जय जानकी रमण रस सागर।।
जय अवधेश जनेश दुलारे। रूप अनूप जगत उजियारे।।
जय सरयू तट कुंज विहारी। कोटि मदन छबि पर बलिहारी।।
जय-जय कोशलेश सुत प्यारे। रसिकन मन चित चोरन हारे।।
जय मैथिली दृगन  के  तारे। रसमय  पावन  चरित तिहारे।।
जय रसिकन रस प्रेम प्रदायक। जय रस रूप सकल रसनायक।।
जय-जय शरणागत भयहारी। श्रीप्रमोद बन कुंज बिहारी।।
जयति अनादि अशेष कृपाला। जानकि जीवन रूप रसाला।।
छबि गुन शील रूप सुख सागर। अमित तेज बल बुद्धि उजागर।।
जयति कृपा करुणा सुख कन्दा। हरण सकल कलिमल भ्रमफन्दा।।
जय-जय जगत जनक जग कारण। करुणानिधि भूभार उतारण।।
शिवविधि विष्णुदेव मुनिनारद। शुक सनकादिक ब्रह्मविशारद।।
नाथचरण सरोज चित धरहीं। हित सों ध्यावत उर सुख भरहीं।।
जनमन रुचिको सदा निबाहत। निज ऐश्वर्य स्वरूप भुलावत।।
निज भक्तन पर सर्वस वारत। सेवक हित मानव तन धारत।।
प्राकृत जनइव करि नरलीला। संतन सुखद मोद रसलीला।।
हे सिय रंग रंगे पिय प्यारे। जीवन धन मम दृगन सितारे।।
एकबार हँसि हृदय लगाइय। संसय मोह समूल नसाइय।।
लेत  जो विबसहुँ नाम तुम्हारा। सोउ बिन श्रम उतरत भव पारा।।
प्रेम समेत जपै मनलाई। तेहिं कर विनहीं मोल बिकाई।।
वाकी योग क्षेम निज हाथा। करत देर लगावत नाथा।।
आत्म समर्पण जो करि देवै।  केवल नाथ शरण गति लेवै।।
निज सर्वस तेहिं ऊपरवारी। पीछे चलत धनुष करधारी।।
हौं अधमाधम अति अघरूपा। अधम उधारन रघुकुलभूपा।।
डूब रहेउँ भवसिन्धु मझारी। निजकर गहि अब लेहुँ उबारी।।
शरणागत प्राणहुँ ते प्यारो। तब दृढ़ ब्रत श्रुति शास्त्रा पुकारो।।
सुनि अस बिरद शरण तब आयो। बिनु गथ प्रभु के हाथ बिकायो।।
अब अपनाइअ निज जनजानी। सुहृद सुशील कृपा गुनखानी।।
अति अज्ञान  हृदय  ममछायो। अहमिति  बस  निजरूप भुलायो।।
जगत अनित्य सत्य सम जानी। रमत सदा यामें सुख मानी।।
अति चंचल मन विषयनमाहीं। पगो रहत कबहूँ थिर नाहीं।।
राग   दोष  ईर्षा   कुटिलाई। छल प्रपंच अतिसय दुखदाई।।
बिबिध भाँति नित मोहिं नचावें। नाथ चरण ते दूर बहावें।।
जेहि पर तब कर कंजन छाया। डरति सदा तेहि ते जड़माया।।
याते पुनि-पुनि कहौं निहोरी। अति सभीत मैं दोउ करजोरी।।
चरण शरण में अब रख लीजै। हिय में आप बसेरो कीजै।।
स्वयं प्रकाश होइ उरमाहीं। मिटै अविद्या संसय नाहीं।।
सीता शरण नाथ की आशा। सकल जगत से रहौं निराशा।।
दोहाः-
युगल चरण पंकजन में मधुकर इव मन मोर।
सीताशरण बसै सदा विनय अहै चित चोर।।
सावधान एकान्त में मन करि परम सचेत।
पाठ करै अति शुचि हृदय सादर प्रेम समेत।।
सो रघुनन्दन की कृपा पावै अविचल धाम।
सीताशरण सदा हृदय विहरैं सीताराम।।
छं. सो.-
जय रसिकेश उदार प्राण जीवन धन प्यारे।
जय छबि निधि सुख सिन्धु रूप गुनशील उजारे।।
जय जय करुणा खानि मृदुलचित कृपा अगारा।
निज जन मन अभिराम जयति रघुबंश कुमारा।।
निर्हेतुकी दयालु प्रणत जन आँनन्द कारी।
भक्त बछल सुख धाम राम श्रीअवध बिहारी।।
निज पद कँज दिखाय हरिय अति बिपति हमारी।
सीता शरण बिलोक चरण होइहौं बलिहारी।।
।। श्री राम चालीसा सम्पूर्ण ।।
।। जय श्रीराम।।
कान्हादर्शन ज्योतिष केन्द्र
आचार्य धीरेन्द्र
mo.9871662417

Saturday, November 10, 2012

बैकुण्ठ चतुर्दशी



।। बैकुण्ठ चतुर्दशी ।।

कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी कहते हैं, इसमें यमराज का पूजन होता है। और कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुण्ठ चतुर्दशी कहते हैं। बैकुण्ठ चतुर्दशी को प्रणवेश विष्णु, केदारेश शंकर भगवान की पूजा करनी चाहिये। इस दिन कमल फष्प से पूजन किया जाय तो सर्वश्रेष्ठ है।
प्रातः स्नान आदि से निवृत्त हो दिन भर व्रत रखें, तथा रात्रि में भगवान विष्णु की पूजा करें। फिर शंकर जी की पूजा करें। दूसरे दिन स्नान आदि से निवृत्त हो शिवजी का पूजन करके ब्राह्मणों को जिमाकर स्वयं प्रसाद ग्रहण करना चाहिये। ऐसा करने से भगवान विष्णु भक्ति एवं भगवान शिव सुख संपत्ति देते हैं।  लोक परलोक दोनों सुधरता है।
कथा-एक समय भगवान विष्णु ने कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी को ब्रह्म मुहूर्त में मणिकार्णिका यह घाट काशी विश्वनाथ में स्थित है-घाट में स्नान कर पार्वती का पूजन करके शिव जी का पूजन किया। तथा एक हजार कमल पुष्पों से अर्चन का संकल्प कर पुष्प चढ़ाने लगे। परीक्षार्थ एक पुष्प शिव लीला से कम हो गया। भगवान ने सोचा मेरे भक्त मुझे कमलनयन कहते हैं। झट से नेत्र चढ़ाने के लिये निकालने को उद्यत हुए, भोलेनाथ ने प्रगट होकर हाथ पकड़ लिया और वरदान मांगने को कहा। विष्णु भगवान ने कहा-प्रभु, राक्षसों से रक्षार्थ आयुध सूर्य की प्रभा वाला सुदर्शन चक्र प्रदान किया। और कहा जो मेरी भक्ति करता है, और विष्णु से द्वेष करता है। ‘‘ अर्थात् शिवभक्त विष्णु भगवान् का विरोधी नहीं होना चाहिये और विष्णु भक्त शिव द्रोही नहीं होना चाहियेयदि ऐसा कोई भक्त है तो वह घोर नरकों में वास करता है। भगवान् शिवजी कहते हैं कि मुझे विष्णु अतिशय प्रिय है। बैकुण्ठ से आकर चतुर्दशी को पूजन किया है, इसलिये इसका नाम बैकुण्ठ चतुर्दशी होगा।
इस दिन जो पहले भगवान् नारायण का पूजन कर भगवान् भूत-भावन चन्द्र मौलीश्वर भोलेनाथ का पूजन करता है, उसे बैकुण्ठ धाम प्राप्त होता है इसमें कोई संशय नहीं है।

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