शिवपूजन के लिये विशेष तथ्य

कामना भेद से रुद्राभिषेक द्रव्य

१. जल से अभिषेक करने पर शीघ्र ही वृष्टि होती है, एवं ज्वर भी शान्त होता है।
२. कुशोदक से अभिषेक करने पर व्याधियों का शमन होता है।
३. दधि से अभिषेक करने पर पशु आदि की प्राप्ति होती है।
४. गन्ने के रस से अभिषेक करने पर लक्ष्मी की सिद्धि प्राप्त होती है।
५. मधु से अभिषेक करने पर धन की प्राप्ति होती है।
६. तीर्थ के जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
७. दूध से अभिषेक करने पर शीघ्र ही पुत्र की प्राप्ति होती है,  और प्रमेह रोग भी नष्ट होता है।
८. घी की धारा से सहस्र नोमों से अभिषेक करने पर वंश का विस्तार होता है।
९. शर्करा मिश्रित दूध से अभिषेक करने पर जड बुद्धि भी श्रेष्ठ बुद्धि में परिवर्तित हो जाती है।
१ॉ. सर्षों के तेल से अभिषेक करने पर शत्रुओं का शमन होता है।
११. शिवजी का अभिषेक गो शृङ्ग से करना चाहिये (शिवं गवयशृङ्गेण)।
१२. शिवजी के अभिषेक के लिये यजुर्वेदोक्त रुद्री प्रशस्त मानी गयी है।
१३. पवित्र मनुष्य सदा ही उत्तराभिमुख होकर शिवार्चन करें।
१४. मृत्तिका, भस्म, गोबर, आटा, ताँबा और कांस का शिवलिङ्ग बानाकर जो मनुष्य एकबार भी पूजन करता है वह अयुतकल्प तक स्वर्ग में वास करता है।
१५. नौ, आठ, और सात अँगुल का शिवलिङ्ग उत्तम होता है। तीन, छः, पाँच तथा चार अँगुल का शिवलिङ्ग मध्यम होता है। तीन, दो, और एक अँगुल  का शिवलिङ्ग कनिष्ठ होता है। इस प्रकार यथा क्रम से चर प्रतिष्ठित शिवलिङ्ग नौ प्रकार का कहा गया है।
  १६. शूद्र, जिसका उपनयन सँस्कार नहीं हुआ है, स्त्री और पतित ये लोग केशव या शिव का स्पर्श करते हैं तो नरक प्राप्त करते हैं।                            (स्कन्द पुराण)
१७. स्वयं प्रदुर्भूत बाणलिंग में, रत्नलिंग में, रसनिर्मित लिंग में और प्रतिष्ठित लिंग  में चण्ड का अधिकार नहीं होता।
१८. जहाँ पर चण्डाधिकार होता है वहाँ पर मनुष्यों को उसका भोजन नहीं करना चाहिये। जहाँ चण्डाधिकार नहीं होता है वहाँ भक्ति से भोजन करें। 
(नि.सि.पृ.सं.७२ॉ)
१९. पृथिवी, सुवर्ण, गौ, रत्न, ताँबा, चाँदी, वस्त्रादि को छोड़कर चण्डेश के लिये निवेदन करें। अन्य अन्न आदि, जल, ताम्बूल, गन्ध और पुष्प, भगवान् शंकर को निवेदित किया हुआ सब चण्डेश को दे देना चाहिये।(नि.सि.पृ.सं.७१९)
२ॉ. विल्वपत्र तीन दिन और कमल पाँच दिन वासी नहीं होता और तुलसी वासी नहीं होती। (नि.सि.पृ.सं.७१८)
२१. अँगुष्ठ, मध्यमा और अनामिका से पुष्प चढ़ाना चाहिये एवं अँगुष्ठ-तर्जनी से निर्माल्य को हटाना चाहिये।

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